जब दिलों में प्यार का मंज़र बनेगा,
देखना उस दिन ख़ुदा का घर बनेगा ।
बन गया अपने वतन का वो तो लीड़र,
कुण्डली में था कि जो तस्कर बनेगा ।
है यकीं इक दिन ख़ुदा देगा मुझे भी,
पर न जाने कब मेरा छ्प्पर बनेगा ।
सांस ले ली बाप ने भी आख़िरी अब,
फूल जैसा भाई भी नश्तर बनेगा ।
लग गई फिर आग कच्ची बस्तियों में,
सुन रहे इक सेठ का दफ़्तर बनेगा ।
अब भटकने का ’शरद’ को डर नहीं है,
उसका रहबर मील का पत्थर बनेगा ।
Jul 19, 2008
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1 comment:
शरद जी,
अब भटकने का ’शरद’ को डर नहीं है,
उसका रहबर मील का पत्थर बनेगा ।
बहुत खूब कहा है आपने...
बहुत बढ़िया ...
लाजवाब....
बेमिसाल ....
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