Jul 31, 2008

ग़ज़ल : उन हसीं लम्हों को फिर आबाद करना

उन हसीं लम्हों को फिर आबाद करना
तुम कभी बचपन के दिन भी याद करना ।

लौट आएं फिर से वो गुज़रे ज़माने,
तुम खुदा से बस यही फ़रियाद करना ।

दिल तुम्हारा भी उडेगा आस्मां में ,
कै़द से पंछी कोई आज़ाद करना ।

तुम न रहना नाखुदा के ही भरोसे ,
तुम खुदा को भी सफ़र में याद करना ।

कब मिलेगा वक़्त जो हमको मिला है ?
बेवज़ह ही मत इसे बरबाद करना ।

मोम की मानिन्द रखना दिल को अपने,
हौसले को पर ’शरद’ फ़ौलाद करना ।

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