Jul 21, 2008

ग़ज़ल : जब तलक आसमान बाकी है

जब तलक़ आसमान बाक़ी है,
पंछियों की उडान बाकी़ है ।

अभी लंका ही ठीक है सीता,
अभी इक इम्तहान बाक़ी है ।

चीर ज्यों द्रोपदी का बढ़ता गया,
उसका अब भी लगान बाकी़ है ।

शेर पेडो़ पे चढ़ नही पाए,
इसलिए ये मचान बाकी़ है ।

कैसे निर्दोष मैं कहूं खुद को,
अभी तेरा बयान बाकी़ है ।

ये ग़ज़ल सबको भली लगती है,
इसके शे’रों में जान बाकी़ है ।

माल लूटा ’शरद’ रकीबों ने,
अब तो बस दास्तान बाकी़ है ।

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