पत्थरों का ये बडा़ एहसान है,
हर क़दम पर अब यहाँ भगवान है ।
जो बुझा पाई न नन्हे दीप को,
ये हवाओं का भी तो अपमान है ।
फिर खिलौनों की दुकाने सज गईं,
मुश्किलों में बाप की अब जान है ।
दफ़्न है सीने में मेरी आरजू़ ,
बन गया दिल जैसे कब्रिस्तान है ।
देखता ही शब्द बेचारा रहा,
अर्थ को मिलता रहा सम्मान है ।
जब कोई प्यारा सा बच्चा हँस दिया,
यूं लगे सरगम भरी इक तान है ।
आप सबके ख्बाब हो पूरे सभी,
बस ’शरद’ के दिल में ये अरमान है ।
शरद के स्वर में भी सुनें
Jul 17, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment