दर्द के साथ दोस्ती कर ली,
इसलिए मैंनें खुद्कुशी कर ली ।
अश्क़ आँखों में कै़द रह न सके,
दिल की हालत की मुखबरी कर ली ।
उनकी आँखों में जो सागर देखा,
हमने आँखों में इक नदी कर ली ।
ज़िन्दगी को संवारने के लिए,
हमने बरबाद ज़िन्दगी कर ली ।
हाले दिल जब किसी से कह न सका,
मैनें हमराज़ डायरी कर ली ।
अब इबादत का घर भी साफ़ नहीं,
हमने उसमें भी गन्दगी कर ली ।
मेरी हिम्मत की दाद दें मैनें,
शायरों बीच शायरी कर ली ।
दोस्त उसका भी क्या बना तू ’शरद’,
इस जहाँ से ही दुश्मनी कर ली ।
Jul 24, 2008
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1 comment:
शरद जी,
बहुत खूब कहा है आपने...
बहुत बढ़िया ...
लाजवाब....
बेमिसाल ....
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