Jul 19, 2008

ग़ज़ल : जब से मेघों से मुहब्बत हो गई

जब से मेघों से मुहब्बत हो गई है,
सूर्य की धुंधली सी रंगत हो गई है ।

झूमता है चन्द्रमुख को देख सागर,
आदमी सी इसकी आदत हो गई है ।

ख़ुद को बौना कर लिया है आदमी ने,
उस पे हाबी अब शरारत हो गई है ।

जाने कितने लोग इस दिल में बसे हैं,
बस्तियों सी इसकी हालत हो गई है ।

जब मुहब्बत का सबक पढ़ने लगे तो,
उससे छोटी हर इबादत हो गई है ।

मिल रहीं इस बात से खुशियाँ ’शरद’ को
दूसरों को ग़म में राहत हो गई है ।

No comments: