Jul 25, 2008

ग़ज़ल : इस जहाँ में अब ये किस्सा आम है

इस जहाँ में अब ये किस्सा आम है,
प्यार जो करता है वो बदनाम है ।

वो तो इंसां को खुदा है मानता ,
इस तरह का मुझ पे इक इल्जा़म है ।

सारी दुनियां को वो ठोकर मारता,
जिसके हाथों में सुरा और् जाम है ।

खुश है वो बाजी़ बिछा कर मुल्क़ मेँ,
जिनके पत्तों में तुरुप भी राम है ।

या खुदा अगले जनम ये मत कहूं ,
पिछले जन्मों का ही ये अञ्जाम है ।

कह गए रहिमन कि पानी राखिए,
आजकल रोटी का मँहगा दाम है ।

ज़िक्र जिसका हर जु़बां पर आ रहा,
उसके होठों पर ’शरद’ का नाम है ।




1 comment:

स्वप्न मञ्जूषा said...

शरद जी,
बहुत खूब कहा है आपने...
बहुत बढ़िया ...
लाजवाब....
बेमिसाल ....
word verification hata dein to accha rahege