जब कबाडी़ घर से कुछ चीजें पुरानी ले गया,
वो मेरे बचपन की यादें भी सुहानी ले गया ।
इस तरह सौदा किया है आदमी से वक़्त ने,
तज़रुबे कुछ दे के वो उसकी जवानी ले गया ।
दिन ढ़ले जाकर तपिश सूरज की यूं कुछ कम हुई,
अपने पहलू में उसे सागर का पानी ले गया ।
आ गया अख़बार वाला हादिसे होने के बाद,
बातों ही बातों में वो मेरी कहानी ले गया ।
क्या पता फिर ज़िन्दगी में उनसे मिलना हो न हो,
बस ’शरद’ ये सोचकर उसकी निशानी ले गया ।
Jul 17, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment