Mar 21, 2009

ग़ज़ल " फ़ना जब भी हमारे राज़ होंगे.

फ़ना जब भी हमारे राज़ होंगे,
तो जीने के अलग अन्दाज़ होंगे ।

खफ़ा उनसे मैं होना चाहता हूँ,
मग़र डर है कि वो नाराज़ होंगे ।

ज़रा पन्नों को हौले से पलटना,
वहाँ नाज़ुक- से कुछ अल्फ़ाज़ होंगे ।

बहुत महफ़ूज़ है पिंजड़े में चिड़िया,
गगन में तो हज़ारों बाज़ होंगे ।

अभी तो हैं तमंचे उनके हाथों,
वो दिन कब आएगा जब साज़ होंगे ।

’शरद’ के राज़ ही जो खोलता हो ,
तो फ़िर उसके वो क्यों हमराज़ होंगे ।


शरद के स्वर में भी सुनें