Jul 20, 2008

ग़ज़ल : इन दुकानों में सजा सामान ...

इन दुकानों में सजा सामान सब बेकार है,
पहले जैसा अब कहाँ पर तीज या त्यौहार है ।

दीप थोडी़ देर ही जलकर के देखो बुझ गए,
अब न वैसा तेल है न तेल में वो धार है ।

खिड़कियाँ ही जब मकानों की सड़क की ओर हैं,
फिर शिकायत क्यों ? सड़क का आदमी बदकार है ।

सिर्फ़ नेताओं की बातें, क़त्ल, चोरी, अपहरण,
बस यही मिलता जहां वो मुल्क़ का अख़बार है ।

तुम मुबारकबाद दिल से दो या मत दो ग़म नहीं,
खा के दावत, दो लिफ़ाफा ये बचा व्यवहार है ।

भेद अश्कों ने कभी ग़म और खुशी में न किया,
दोनों सूरत में छलककर कर दिया इज़हार है ।

क्यूं जनम लेता नहीं किस सोच में बैठा है वो ?
आज भी धरती पे चारों ओर अत्याचार है ।

तू ’शरद’ यारों की खातिर चैन से कब रह सका,
तुझको आता ही नहीं करना कभी इनकार है ।

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