Jul 17, 2008

ग़ज़ल : आखिरी वक्त यूं तो दूर न था

आखिरी वक़्त यूं तो दूर न था,
वो तो शायद उसे मंजू़र न था ।

मुझे मालिक का नमक ले बैठा,
वरना इतना कभी मजबूर न था ।

कौन सा ऐसा ज़माना था कहो,
किस ज़माने में ये दस्तूर न था ।

फिर गए साल ये सौगात मिली,
फिर कई मांगों में सिन्दूर न था ।

अब कोई लाख़ बहाने कर ले,
गाँव वो शहर से कुछ दूर न था ।

नाम उनका है जो बदनाम हैं लोग,
तू ’शरद’ इसलिए मशहूर न था ।

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