Sep 1, 2009

ग़ज़ल : कभी जागीर बदलेगी कभी सरकार बदलेगी

कभी जागीर बदलेगी, कभी सरकार बदलेगी ।
मग़र तक़दीर तो अपनी बता कब यार बदलेगी ?

अगर सागर की यूं ही प्यास जो बढती गई दिन दिन,
तो इक दिन देखना नदिया भी अपनी धार बदलेगी ।

हज़ारों साल में जब दीदावर होता है इक पैदा,
ऒ ! नर्गिस अपने रोने की तू कब रफ़्तार बदलेगी ?

सदा कल के मुकाबिल आज को हम कोसते आए,
मगर इस आज की सूरत भी कल हर बार बदलेगी ।

वो सीना चीर के नदिया का फिर आगे को बढ़ जाना,
बुरी आदत सफ़ीनों की भंवर की धार बदलेगी ।

’शरद’ पढ़ लिख गया है पर अभी फ़ाके बिताता है,

ख़बर उसको न थी क़िस्मत , जो हों कलदार बदलेगी ।

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

रचना के लिए बधाई!

अपूर्व said...

हज़ारों साल में जब दीदावर होता है इक पैदा,
ऒ ! नर्गिस अपने रोने की तू कब रफ़्तार बदलेगी ?

बड़ी रोचक और लीक से हट कर बात कही आपने..बधाई

Udan Tashtari said...

गजब!! बहुत बेहतरीन!

Randhir Singh Suman said...

nice ........nice........nice.....