आप तो बस अपने दम खम देखते हैं,
किसलिए फिर मुझमें हम दम देखते हैं ।
याद जब आते कभी बचपन के वो दिन,
तब पुराने एलबम हम देखते हैं ।
हमने खंज़र को भी दिल से है लगाया,
किस तरह निकलेगा ये दम देखते हैं ।
जो तकाजे़ के लिए बैठे हैं घर में,
चिलमनों की ओर हरदम देखते हैं ।
क्या सियासत की हवा चलने लगी है ?
का़तिलों के पास मरहम देखते हैं ।
मौत पर उनकी भले कोई न रोए,
पर झुके आधे ये परचम देखते हैं ।
महफ़िलों में जब से शिरकत की ’शरद’ ने,
लोग औरों की तरफ़ कम देखते हैं ।
शरद के स्वर में भी सुनें
Jul 18, 2008
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