Jul 18, 2008

ग़ज़ल : दिल के छालों का ज़िक्र आता है

दिल के छालों का ज़िक्र आता है,
उनकी चालों का ज़िक्र आता है ।

प्यार अब बांटने की चीज़ नहीं,
शूल, भालों का ज़िक्र आता है ।

सूर, मीरां, कबीर मिलते नहीं,
बस रिसालों का ज़िक्र आता है ।

लोग जब हक़ की बात करते हैं,
बन्द तालों का ज़िक्र आता है ।

जब बिना शह ही मात खाई है,
कुछ दलालों का ज़िक्र आता है ।

आग जब दिल में जलने लगती है,
तब मशालों का ज़िक्र आता है ।

जल के मिट तो रहे थे परवाने,
पर उजालों का ज़िक्र आता है ।

पाँच वर्षों में ’शरद’ भूखों के,
फिर निवालों का ज़िक्र आता है ।

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