दिल के छालों का ज़िक्र आता है,
उनकी चालों का ज़िक्र आता है ।
प्यार अब बांटने की चीज़ नहीं,
शूल, भालों का ज़िक्र आता है ।
सूर, मीरां, कबीर मिलते नहीं,
बस रिसालों का ज़िक्र आता है ।
लोग जब हक़ की बात करते हैं,
बन्द तालों का ज़िक्र आता है ।
जब बिना शह ही मात खाई है,
कुछ दलालों का ज़िक्र आता है ।
आग जब दिल में जलने लगती है,
तब मशालों का ज़िक्र आता है ।
जल के मिट तो रहे थे परवाने,
पर उजालों का ज़िक्र आता है ।
पाँच वर्षों में ’शरद’ भूखों के,
फिर निवालों का ज़िक्र आता है ।
Jul 18, 2008
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