बहुत से लोग नंगे पाँव जब सड़कों पे चलते हैं,
उन्हें बस देखने भर से हमारे पैर जलते हैं ।
न जाने क्यूं खु़दा करता है इतना भेद बच्चों में ,
कोई महलों में रहते हैं कोई गलियों में पलते हैं ।
ये दौलत हाथ का है मैल कहते है सुना सबको,
जिन्हें मिलती नहीं है वे तभी तो हाथ मलते हैं ।
भले सूरज के जैसा कोई भी बन जाए दुनियां में,
पर ऐसे लोग भी जब वक़्त आता है तो ढ़लते हैं ।
बुजु़र्गों की बदौलत ही रिवायत है अभी ज़िन्दा
नहीं तो हम सभी बस वक़्त के साँचे में ढ़लते हैं ।
बिना सोचे, बिना समझे जो कुछ भी बोलते रहते,
कुछ ऐसे शख्स़ ही दुनियां में सब लोगों को खलते हैं ।
ग़ज़ल सुनकर ’शरद’ की लोग आपस में लगे कहने,
रहा सुनने को कुछ बाक़ी नहीं, अब घर को चलते हैं ।
Jul 23, 2008
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