Jan 28, 2009

ग़ज़ल : मेरा साया मुझे हर वक्त कुछ

मेरा साया मुझे हर वक़्त कुछ बदला सा लगता है,
मगर ये साथ देता है तो फ़िर अपना सा लगता है।

बिताते हैं सितारे भी तो रातें जाग कर हरदम,
अब अपना दर्द उनके सामने अदना सा लगता है।

नदी जब सूख जाती है किनारे खुश बहुत होते ,
दख़ल देना किसी का बीच में गन्दा सा लगता है।

अगरबत्ती जलाने का हो मक़सद कुछ भी अब उनका,
मुझे ये क़ैद से खुशबू रिहा करना सा लगता है।

भले कितना बडा़ बन जाए अब इन्सान दुनिया में,
मगर वो उस की माँ को तो सदा बच्चा सा लगता है।

क़लम अपनी भी इक दिन देखना दुनिया बदल देगी,
’शरद’ ये सोचता है तो उसे सपना सा लगता है।



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